डॉ.राधेश्याम बारले पद्मश्री
डॉ. राधेश्याम बारले छत्तीसगढ़ के ख्याति प्राप्त पंथी नृत्य के नर्तक हैं। उनको देश के प्रतिष्ठित सम्मान 'पद्मश्री' (2021) से सम्मानित किया गया।
डॉ. राधेश्याम बारले का जन्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के पाटन तहसील के ग्राम खोला में 9 अक्टूबर 1966 को हुआ। इन्होंने एम.बी.बी.एस. के साथ ही इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से लोक संगीत में डिप्लोमा किया है। डॉ. बारले को उनकी कला साधना के लिए इससे पहले भी कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
डॉ. राधेश्याम बारले पंथी नृत्य और संगीत के माध्यम से बाबा गुरू घासीदास के संदेशों को देश-दुनिया में प्रचारित और प्रसारित करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है।
सतनाम पंथ की साधना का नृत्य है पंथी
पंथी गीत और नृत्य में सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरु घासीदास के जीवन और उपदेशों का गायन होता है। इस नृत्य में एक मुख्य नर्तक होता है जो गीत की कड़ी उठाता है। इसे दूसरे नर्तक दोहराते हैं। यह नृत्य धीमी गति से शुरू होता है मांदर की ताल के साथ इसकी गति बढ़ती जाती है। अपने चरम पर यह तेज गति का नृत्य बन जाता है। मांदर और झांझ इस नृत्य के मुख्य वाद्य हैं, नर्तक अपने पैरों में घुंघरू भी बांधते हैं।
दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में डॉ. बारले को अक्सर देखा और सुना जा सकता है जहां वे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा देश-विदेश के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी उनकी भागीदारी देखी जाती है। भोरमदेव, सीरपुर, खजुराहो और देश में अन्य जगहों पर होने वाले महोत्सवों में डॉ. राधेश्याम बारले अपनी नृत्य शैली से लोगों का मन मोह लेते हैं। राज्य या राष्ट्रीय स्तर के लगभग हर कार्यक्रम में उनके नृत्य को देखा जा सकता है। यहां तक कि नक्सल प्रभावित इलाकों में भी डॉ. वारले ने अपनी नृत्य शैली से शांति का संदेश दिया है और युवाओं को हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है।
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